६३४ भारत में अंगरेजी राज ज़िक्र पहले कई बार आ चुका है, जो दिल्ली में मुसलमानी तर्ज से रहता था, और जिसने अनेक हिन्दोस्तानी रण्डियाँ रख रक्खी थीं, जिनसे वह गुप्तचरों का काम लिया करता था। प्रॉक्टरलोनी के अधीन करीब छ हजार हिन्दोस्तानी पैदल और तोपखाने के सैनिक थे। यह सेना सतलज के निकट की पहाड़ियों पर से नेपाल पर हमला करने के लिए थी। (२) दूसरी सेना मेजर जनरल जिलेस्पी के अधीन मेरठ में थी, जिसका काम देहरादून, गढ़वाल, श्रीनगर और नाहन पर हमला करना था। इस सेना में करीब एक हजार गोरे सिपाही और ढाई हज़ार देशी पैदल थे। (३) तीसरी सेना मेजर जनरल वुड के अधीन बनारस और गोरखपुर में जमा की गई। इस सेना में करीब एक हजार गोरे और तीन हजार देशी सिपाही थे। इसका काम बूटवाल के रास्ते पाल्पा में प्रवेश करना था। (४) चौथी सेना मेजर जनरल मॉरले के अधीन मुर्शिदाबाद से जमा की गई। इसमें १०७ गोरे और करीब ७००० देशी सिपाही थे । नेपाल पर हमला करने के लिए यही मुख्य सना थी। इसका काम गण्डक और वागमती के बीच के दरौं से होकर नैपाल की राजधानी काठमण्डू पर हमला करना था। (५) पाँचवीं सेना और अधिक पूरव में कौशी नदी के उस पार मेजर लैटर के अधीन जमा की गई। इस सेना में करीब दो हज़ार सिपाही थे। मेजर लैटर का मुख्य कार्य पूनिया की सरहद की
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भारत में अंगरेज़ी राज