भारतीय उद्योग धन्धों का सर्वनाश RE प्रजा के पास भी इतने हो जहाज थे जिसने इन सबके पास मिलाकर । इसके अतिरिक्त एशिया का करीब करीब सारा जहाज़ी व्यापार हिन्दुस्तान के बने जहाजों में होता था । इन जहाज़ों के मालिक भी हिन्दोस्तानी थे। ये जहाज़ भारत से चीन, और मलाबार के किनारे से ईरान की खाड़ी और लाल सागर नक उतने ही चक्कर लगाते थे जितने कि भाशा अन्तरोप के रास्ते यूरोप के जल मार्ग का पता लगने के पहले । ___ "किन्तु इन भारत के बने हुए जहाज़ों को सन् १७४५ से पहले लन्दन माल लाने ले जाने की इजाजत नहीं मिली । उस साल चूंकि ईस्ट इण्डिया कम्पनी के बहुत से जहाज़ इङ्गलिस्तान की सरकार के काम में फंसे हुए थे लिहाज़ा प्रान्तीय सरकारों को लिखा गया कि वे माल लाने ले जाने के लिए हिन्दोस्तानी जहाजों को नियुक्त करने । सोलह पौया प्रति टन के हिसाब से चावल और दूसरे वज़नी माल और बीस पौण्ड प्रति टन के हिसाब से हल्का माल टेम्स तक पहुंचाने का तय हुआ । इन जहाज़ों को इजाजत थी कि राह में कम्पनी के इलाके के लिये जो और माल ये मुनासिबसम में लाद सकते थे।" किन्तु भारतीय जहाजों की यह सुविधा थोड़े ही दिनों बाद छीन ली गई, और जब सन् १७६६ में कम्पनी का चारटर फिर से दोहराया गया तो उसमें एक विशेष धारा इस बात की रख दी गई कि इङ्गलिस्तान के व्यापारी. या भारत के व्यापारी, या कम्पनी के अपने मुलाज़िम जो भी माल भारत से इङ्गलिस्तान लाएँ ले जाएँ वे केवल उन्हीं जहाज़ों में ले जा सकेंगे जो कम्पनी के किराये के होंगे, अन्य दूसरे जहाज़ों में नहीं। • "History of Merchant shtppeng" vol u, Pp 454, 455
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भारतीय उद्योग धन्धों का सर्वनाश