१६ .भारत में अंगरेजी राज की पादत बढ़ती जाती है जिससे अंगरेज़ी व्यापार को लाभ है। निस्सन्देह भारतीयों को चरित्रभ्रष्ट करने में उस समय के विदेशी व्यापारी-शासकों का स्पष्ट लाभ था। अब हम इन समस्त प्रयत्नों के परिणामों की ओर नज़र डालते हैं। नीचे के श्रङ्कों से साबित है कि अपने इन __ प्रयत्नों में इङ्गलिस्तान के व्यापारी-शासकों को के व्यापार का अन्त पूरी सफलता प्राप्त हुई। सर चार्ल्स ट्रेवेलियन ने सन् १८३४ में प्रकाशित किया कि सन् १८१६ में जो सूती कपड़े बङ्गाल से विदेशों को गए उनका मल्य १,६५,६४,३८० रुपए था। उसके बाद घटते घटते सन् १८३२ में केवल ८,२२,८६१ रुपए का कपड़ा बङ्गाल से बाहर गया। इसके विपरीत इङ्गलिस्तान का बना हुआ कपड़ा बङ्गाल के अन्दर सन् १८१४ में केवल ४५,००० रुपए का प्राया; सन् १८१६ में ३,१७,६०२ रुपए का, और सन् १८२८ में ७६,९६,३८३ रुपए का केवल सूती कपड़ा इङ्गलिस्तान से बङ्गाल में पाकर खपा । सन् १८२३ तक एक गज़ विदेशी सूत भी बङ्गाल के अन्दर न आता था; किन्तु सन् १८२८ में करीब अस्सी लाख रुपए के कपड़े के अतिरिक्त ३५,२२,६४० रुपए का सूत इङ्गलिस्तान से बङ्गाल में पाया। सर चार्ल्स ट्रेवेलियन लिखता है कि सन् १८३३ तक एक करोड़ रुपए साल का विलायत का बाज़ार और लगभग ८० लाख रुपए का स्वयं वङ्गाल का बाज़ार बङ्गाल के कपड़ा बुनने वालों के
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भारत में अंगरेज़ी राज