पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५०९

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भारतीय उद्योग धन्धों का सर्वनाश

भारतीय उद्योग धन्धों का सर्वनाश ६ १३ और भी अनेक तरह की ज़बरदस्तियाँ की गई । मेजर कोय नामक एक अंगरेज़ लिखता है :- __"प्रत्येक मनुष्य जानना है कि कारीगर अपने औद्योगिक रहस्यों को कितनी सावधानी के साथ छिपा कर रखते हैं। यदि आप हल्टन कम्पनी (इंगलिस्तान को एक कम्पनी ) के मिट्टी के बरतनों के कारखाने को देखने मायें तो सौजन्य के साथ भापको टाल दिया जायगा । फिर भी हिन्दोस्तानी कारीगरों को जबरदस्ती मजबूर किया गया कि वे अपने थानों को धोकर सफेद करने के तरीके और अपने दूसरे औद्योगिक रहस्य मैश्चेस्टर वालों पर प्रकट कर दें, और उन्हें मानना पड़ा । इण्डिया हाउस के महकमे ने एक क्रीमती संग्रह सैयार किया, इसलिए ताकि उसकी मदद से मैन्चेस्टर दो करोड पाउण्ड (अर्थात् तीस करोड़ रुपए) सालाना हिन्दोस्तान के गरीबों से वसूल कर सके । इस संग्रह की प्रतियाँ "चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स" को मुफ्त भेंट की गई और हिन्दोस्तानी रय्यत को उनकी क्रीमत देनी पड़ी । सम्भव है कि सम्पत्ति विज्ञान ( पोलिटिकल इकानामी ) की दृष्टि से यह सब जाया हो, किन्तु वास्तव में इस तरह के काम में और एक दूसरी चीज़ ( लूट ) में बेहद आश्चर्यजनक समानता है।" • “Every one knows how yealously trade secrets are guarded If you went over Messrs Doulton's Pottery Works, you would be politely over looked Yet under the force of comuplsion the Indian workman had to divulge the manner of his bleaching and other trade secrets to Manchester. A costly work was prepared by the India House Department to enable Manchester to take twenty millions ayear from the poor of India copies were gratutously presented to Chambers of Commerce, and the Indian Razyat had to pay for them This may be political economy, but it is marvellously like something else "-Major J B Keath in the Proneer, September 7, 1891. ५.