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भारतीय उद्योग धन्धों का सर्वनाश

भारतीय उद्योग धन्धों का सर्वनाश ११ समय से ही भारतीय व्यापार और उद्योग धन्धों के नाश और भारत की राजनैतिक पराधीनता का बीज वपन हुआ। बङ्गाल के अन्दर अंगरेज व्यापारियों को जो रियायतें दो गई उन्हीं का परिणाम नवाब सिराजुद्दौला के विरुद्ध षड़यन्त्रों का रचा जाना और प्लासी का निर्णायक संग्राम था। इसके बहुत दिनों बाद भारत की अंगरेज़ो सरकार ने भारतवासियों के खर्च पर श्रासाम और कुमायूँ के अन्दर चाय की काश्त क अनक तजरुबे किए; इसलिए कि तजरुबे सफल होने के बाद वहाँ के चाय के सब बागीचे ऐसे अंगरेजों के हवाले कर दिए जायें जो वहाँ रह कर काम करना चाहे, बाद में ऐसा ही किया भी गया । भारतवासियों के खर्च पर कई अंगरेजों को तरह तरह की चाय के बोज लाने के लिए चीन भेजा गया। और चीनी काश्तकार हिन्दोस्तान में लाए गए ताकि अंगरेज़ उनम चाय की काश्त का तरीका मीख सके । इसलिए, ताकि इन चाय के बागीचों में काम करने वालों की कभी कमी न होने पाए, वहाँ पर शुद्ध गुलामी की प्रथा कानूनन् प्रचलित की गई । अपने भारतीय गुलामों पर इन गोरे मालिकों के अत्याचारों को कथा भी एक पृथक कहानी है। इसी प्रकार लोहे के काम करने वाले और नोल को काश्त करने वाले अंगरेजो को भी भारत वासियों के खर्च पर समय समय पर धन और कानून दोनों की सहायता दी गई। इसी तरह के और भी असंख्य उदाहरण दिए जा सकते हैं, किन्तु इस विषय को विस्तार देना व्यर्थ है।