४२० भारत में अंगरेजी राज यहाँ तक कि दुशालों के व्यापारियों को दो बार, चमड़े के व्या- पारियों को तीन बार और सूती कपड़े के व्यापारियों को चार बार चुङ्गी देनी पड़ती थी । अन्त में फ्रेड्रिक शोर लिखता है :- “यदि यह हालत बहुत दिनों जारी रही, तो थोड़े ही दिनों में हिन्दो- स्तान सिवाय इतने प्रश्न के कि जो उसकी आबादी के गुज़ारे के लिए ठीक कानी हो, उसे पकाने के लिए थोड़े से भहे मिट्टी के बरतनों के, और थोड़े से मोटे कपड़ों के और कुछ न बना सकेगा । यदि हम केवल इस बोझ को हिन्दोस्तान की छाती पर से हटा लें ता अब भी थोड़े ही दिनों में भारत और इंगलिस्तान के बीच व्यापार का तम्ता बिलकुल पलट जाय ।" जो सात उपाय सन् १८१३ में नियत किए गए उनमें पहले तीन का विस्तृत बयान दिया जा चुका है। अंगरेज ग्यापारियों तथा उपाय अंगरेजों को भारत में रहने और को सहायता " काम करने की विशेष सुविधाएँ देना था। भारत की दृष्टि से यह गलती वास्तव में उस समय में शुरू हुई जब कि दिल्ली के सम्राट ने एशियाई उदारता में श्राकर इन विदेशियों को व्यापार करने के लिए भारत में इस तरह के अधिकार दे दिए जिस तरह के कि श्राज कल का कोई ईसाई शासक किसी भी दूसरे देश के लोगों को अपने देश के अन्दर न देगा । वास्तव में उस
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.if this be continued much longer, India will, ere long, product nothing but food just sufficient for the population, a few coarse earthen-ware pots to cook it in, and a few coarse cloths Onh remove this incuhus and the tables will very soon be turned"-Ibid