भारतीय उद्योग धन्धों का सर्वनाश ६ ०३ और रिकर्ड नामक एक अंगरेज़ ने सन् १३२ की पालिमेण्ट की कमेटी के सामने बयान किया कि किमी चीज़ पर ३,००० फीसैकड़ा तक महसूल लिया जाता था । अर्थात् एक रुपए की चीज़ पर तीस रुपए महसूल। मारांश यह कि जब कि एक ओर इङ्गलिस्तान के बने हुए माल पर हिन्दोस्तान में अधिक से अधिक ढाई फीसदी महसूल लिया जाता था और बहुत मा माल बिना महसूल प्राने दिया जाता था. दूसरी ओर इङ्गलिस्तान के अन्दर हिन्दोस्तान के माल पर भयङ्कर कानूनी और सामाजिक बहिष्कार जारी था। इतिहास लेखक विलमन इङ्गलिस्तान के कपड़े के व्यापार को उन्नति और भारत के कपड़ा बुनने के धन्धे के भारत की इस प्रकार सर्वनाश के विषय में लिखता है- असहायता ___ “हमारे सूती कपड़े के व्यापार का यह इतिहास इस बात की एक शोकप्रद मिसाल है कि हिन्दोस्तान जिस देश के अधीन हो गया था उसने हिन्दोस्तान के साथ किस तरह अन्याय किया। गवाहियों में यह बयान किया गया था कि सन् १८१३ तक हिन्दोस्तान के सूती और रेशमी कपड़े इङ्गलिस्तान के बाजारों में इङ्गलिस्तान के बने हुए कपड़ों के मुकाबले में ५० फीसदी म ६० फीसदी तक कम दाम पर फायदे के साथ विक सकते थे । इसलिए यह श्रावश्यक हो गया कि हिन्दोस्तान के माल पर ७. और 50 फीसदी महसूल लगाकर या उसका इङ्गलिस्तान में आना सर्वथा बन्द करके इङ्गलिस्तान के व्यापार की रक्षा की जाय । यदि ऐसा न होता, यदि इस तरह की प्राज्ञाएँ न दी गई होती और भारत के माल पर इस तरह के भारी निषेधकारी महसूल न लगाए गए होते, तो
पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४९९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
९०३
भारतीय उद्योग धन्धों का सर्वनाश