भारतीय उद्योग धन्धों का सर्वनाश १०१ अंगरेज़ महिला हिन्दोस्तानी कपड़े की पोशाक पहनती थी तो उसे राजदण्ड दिया जाता था ।* सन् १८१३ में पार्लिमेण्ट की एक कमेटी के सामने गवाही देते हुए रॉबर्ट वाउन नामक एक अंगरेज़ व्यापारी ने, जो हिन्दोस्तान से सूती कपड़े मँगाया करता था, बयान किया कि उन दिनों हिन्दोस्तान से जाने वाले कपड़ों पर इंगलिस्तान में दो तरह का महसूल लिया जाता था। एक, अंगरेजी बन्दरगाहों में माल के जहाजों से उतरते ही और दूसरे इंगलिस्तान निवासियों के उपयोग के लिए इंगलिस्तान की मण्डियों में माल के पहुँचने के समय । इसके अतिरिक्त सारे हिन्दोस्तानो माल को तीन श्रेणियों में बाँट दिया गया था। पहली श्रेणी में मलमल इत्यादि थीं, जिन पर बन्दरगाह में उतरते समय १० फीसदी और इंगलिस्तान को मण्डियों में जाते समय २७१ फीसदी महसूल लिया जाता था। दूसरी श्रेणी में कैलिको (कालीकट का एक ख़ास कपड़ा) इत्यादि थे जिन पर बन्दरगाहों में उतरते समय ३१ फीसदी और मण्डियों में जाते समय ३ फ़ोसदी महसूल लिया जाता था। तीसरी श्रेणी में वे कपड़े थे जिनका बेचना या पहनना इंगलिस्तान के अन्दर जुर्म समझा जाता था। इस तरह के माल पर बन्दरगाहों में उतरते समय ६८ फीसदी महसूल लिया जाता था; और व्यापारियों के लिए आवश्यक था कि उस माल को फौरन् दूसरे मुल्कों • Lecky's History of England in the Eighteenth Centurt, vol vu pp. 255-266,320
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भारतीय उद्योग धन्धों का सर्वनाश