भारत में अंगरेज़ी राज खरीद कर कपड़े के समस्त व्यापार का अनन्य अधिकार कम्पनी अपने हाथों में रक्खे । इस उद्देश को पूरा करने के लिए इतनी ज़बरदस्ती की जाती थी और इतनी अधिक सज़ाएँ दी जाती थी कि अनेक जुलाहों ने मजबूर होकर अपना पेशा तक छोड़ दिया। इस बात को भी रोकने के लिए कि कोई जुलाहा अपना पेशा न छोड़ने पाए, यह नियम कर दिया गया कि किसी जुलाहे को फ़ौज में भरती न किया जाय । एक बार यह भी हुकुम दे दिया गया कि कोई जुलाहा बिना अंगरेज़ अफसर की इजाजत के शहर के दरवाज़ों से बाहर न निकल सके । जब तक जुलाहे सूरत के नवाब की प्रजा थे, उन्हें दण्ड देने और उन पर दबाव डालने के लिए नवाब को बार बार अज़ियाँ दी जाती थीं x x x नवाब अंगरेज़ सरकार के हाथों में केवल एक कठपुतली था x x x आस पास के देशी नरेशों पर भी जोर दिया जाता था कि वे अपने इलाकों में इस बात का हुकुम दे दें कि कपड़ों के थान केवल कम्पनी के सौदागरों और दलालों के हाथ ही बेचे जाय और कदापि किसी दूसरे के हाथ न बेचे जायँ । इसके बाद जब सूरत अंगरेज़ी अमलदारी मे मिला लिया गया तब इसी तरह के अन्यायों और अत्याचारों को जारी रखने के लिए बार बार अंगरेज़ी अदालतों का उपयोग किया जाता था । जब सक कम्पनी सूरत में कपड़े का व्यापार करती रही, कम्पनी के मुलाजिमों का काम करने का ढंग बिलकुल इसी तरह का रहा । ठीक इसी ढंग से दूसरी काठियों का भी व्यापार चलता था ।" • "That the Surat investment was provoided under the most rigorous and oppressive system of coercion, that the weavers were compelled to enter into engagements and to work for the Company, contrary to their own interests, and of course to their own inclinations, choosing in some instances
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भारत में अंगरेज़ी राज