भारतीय उद्योग धन्धों का सर्वनाश E७४ प्राकृतिक तथा हाथ के बने हुए माल के बदले में क्रीमती धातुएँ उन्हें दी जाती तुलना यही लेखक एक दूसरे स्थान पर लिखता है कि हज़रत ईसा . के जन्म के समय से लेकर उनीसवीं सदी के इंगलिस्तान और भारत के मालकी शुरू तक भारत के साथ अन्य देशों का व्यापार बगबर इसी ढङ्ग का बना रहा।। १८ वीं सदो के उत्तरार्ध तक इंगलिस्तान के उद्योग धन्धे भारत के उद्योग धन्धों के मुकाबले में बहुत ही पिछड़े हुए थे। ईगलिस्तान के जुलाहे और अन्य कारीगर सुन्दरता, मज़बूती, सस्तेपन या निकासी, किसी बात में भी अपने माल की तुलना भारतीय माल के साथ न कर सकते थे। उस समय तक जो यूरोपियन व्यापारी भारत पहुँचे उन सब का केवल मात्र उद्देश भारत का बना हुआ माल अपने देशों को ले जाना होता था। यही उहंश ईस्ट इण्डिया कम्पनी का भी था। प्लासी के युद्ध के बाद से बंगाल की लूट के प्रताप अंगरेज़ों को • "In all ages, gold and silver, particularly the latter have been the commodities exported with the greatest profit to India. In no part of the earth do the natives depend so httle upon foreign countries, either for the necessarnes or luxuries of life The blessings of a favourable climate and a fertile soil, augmented by their own ingenuity, afford them wbatever they -desire In consequence of this, trade with them has always been carrned on in one uniform manner, and the precious metals have been given in exchange for their peculhar production, whether of nature or art."-A Historical Disqussttion Concerning India, New edition ( London 1817), p 180 + bid, p. 203
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भारतीय उद्योग धन्धों का सर्वनाश