प्रथम लॉर्ड मिण्टो ६७ मेटका से कहला मेजा कि अंगरेज़ सरकार की तजवीज़ ऐसी विचित्र है कि बिना अन्य सिख सरदारों से सलाह किए मैं अपना अन्तिम निश्चय प्रकट नहीं कर सकता । इसके बाद अपने सरदारों से सलाह करने के लिए रणजीतसिंह मेटकाफ़ को साथ लेकर अमृतसर प्राया। अमृतसर में इस समय एक और छोटी सी घटना हुई, जो अंगरेजों की भारतीय नीति को दृष्टि से ख़ासी अर्थसूचक थी। फरवरी सन् १८०६ में मेटकाफ़ अमृतसर में था। मोहर्रम के दिन थे, मेटकाफ़ के साथ कुछ शिया मुसलमान भी थे। इन लोगों ने बिना रणजीतसिंह या नगर के कर्मचारियों से इजाजत लिए नगर में घूम घूम कर मोहर्रम मनाना शुरू किया और वह भी कुछ ऐसे तरीके से जिस तरीके से कि सिखों की सत्ता कायम होने के समय से उस समय तक कभी भी अमृतसर के अन्दर देखने में न पाया था। यहाँ तक कि अमृतसर के नगर निवासियों को बुरा मालूम हुश्रा। इसी पर कुछ अकालियों और मेटकाफ़ के श्रादमियों में लड़ाई होगई । रणजीतसिंह सुनते ही तुरन्त मौके पर पहुँचा, मेटकाफ़ के खेमों को उसने फौरन् शहर से कुछ दूर भेज दिया और ज्यो त्यो कर झगड़े को शान्त कर दिया। हमें याद रखना चाहिए कि मेहदीअली खाँ ने बाबा खा से एक बात यह भी कही थी कि पञ्जाब में शिया मुसलमानों के साथ बहुत अन्याय किया जाता है।
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