पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४५२

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भारत में अंगरेज़ी राज

८५६ भारत में अंगरेजी राज जॉन मैलकम को अपनी ओर से सर एच० जोन्स को सहायता के लिए रवाना किया। इस बीच ईरान और रूस में कुछ झगड़ा हुश्रा । ईरान ने अंगरेज़ों के वादों के अनुसार अंगरेज़ों से मदद चाही । अंगरेजों ने मदद देने से इनकार कर दिया। विवश होकर ईरान ने अपने कुछ दूत फ्रान्स भेजे । फ्रान्स में इन दूतों का खूब स्वागत हुश्रा, और ईरान और फ्रान्स के बीच सन्धि तय करने के लिए फ्रान्स के कुछ दूत ईरान पाए । ठीक उसी समय अंगरेजों की ओर से एच० जोन्स और मैलकम भी ईरान पहुँचे। मैलकम ने इस बार ईरान दरबार के साथ बड़ीधृष्टता का व्यवहार किया; उसने अपनी बातचीत शुरू करने के लिए सब से पहली शर्त यह रक्खी कि फ्रान्स के राजदूत और उसके साथी ईरान से बाहर निकाल दिए जायें । ईरान के बादशाह को बहुत बुरा मालूम हुआ । मैलकम की डाँट न चल सकी, और उसे असफल भारत लौट आना पड़ा। किन्तु एच० जोन्स ने वहाँ रह कर जिस तरह हो सका, स्थिति को सँभाला और कम से कम कहने के लिए ईरान और इंगलिस्तान के बीच एक सन्धि कर ली। यह सन्धि भारतीय ब्रिटिश सरकार के लिए अधिक मान सूचक न थी। सन्धि की एक शर्त यह थो कि यदि ईरान और अफगानिस्तान के बीच युद्ध हो तो अंगरेज़ उसमें किसी तरह का दखल न दें, और ईस्ट इण्डिया कम्पनी या भारतीय ब्रिटिश सरकार ईरान के किसी मामले में भी किसी तरह का दखल न दें।