५५ का भय था प्रथम लॉर्ड मिण्टो और पञ्जाब भेज कर वहाँ के नरेशों और अन्य लोगों के साथ भी काबुल के बादशाह के विरुद्ध साज़िशे की। अब हम फिर लॉर्ड मिण्टो के शासन काल की ओर पाते हैं। लॉर्ड मिण्टो के समय में ब्रिटिश भारत के ऊपर फ्रान्स और रूस • काबुल के हमले का भय बिलकुल जाता रहा था, किन्तु फ्रान्स के हमले का भय मार्किस वेल्सली के समय से अधिक था। बल्कि सम्भावना यहथी कि फ्रान्स और रूस मिलकर उत्तर पश्चिम के गस्ते भारत पर हमला करें। इससे पूर्व रूस और इंगलिस्तान में परस्पर मित्रता रह चुकी थी। किन्तु सन् १८०७ में यूरोप के अन्दर टिलसिट नामक स्थान पर रूस और फ्रान्स के सम्राटों के बीच सन्धि हुई । कहा जाता है कि उसी समय इन दोनों यूरोपियन सम्राटों ने मिल कर भारत पर हमला करने और ईस्ट इण्डिया कम्पनी के इलाकों को जीत कर आपस में बाँटने का इरादा किया। कुछ दिनों बाद फ्रान्स की आन्तरिक कठिनाइयों के कारण भारत के ऊपर फ्रान्स के हमले का भय जाता रहा, किन्तु रूस के हमले का भय इसके लगभग १०० वर्ष बाद तक बना रहा। यद्यपि यह डर सदा केवल डर ही रहा,फिर भी भारत के अन्दर अंगरेज़ों की शासन नीति पर इसका बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। लॉर्ड मिण्टो के समय में इंगलिस्तान के मन्त्रियों ने रूस और . फ्रान्स के इरादों को विफल करने के लिए सर लॉर्ड मिण्टो और एच० जोन्स को इंगलिस्तान का राजदूत नियुक्त ईरान करके ईरान भेजा, और लॉर्ड मिण्टो ने फिर सर
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प्रथम लॉर्ड मिण्टो