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भारत में अंगरेज़ी राज

४८ भारत में अंगरेजी राज बादशाह को लिखा कि काबुल के बादशाह के सुन्नी अफ़ग़ानों ने लाहौर के शिया मुसलमानों पर ऐसे ऐसे अत्याचार किए हैं कि वहाँ के हज़ारों शिया मुसलमानों ने भाग भाग कर अंगरेज़ों के इलाके में पनाह ली है, इसलिए जमानशाह को दबाना दीन इसलाम की खिदमत करना है। मेहदीअली खाँ के बेधड़क झूठ बोलने की एक छोटी सी मिसाल यह दी जा सकती है कि उसने ईरान के बादशाह ईरान के साथ को लिखा कि अंगरेज कम्पनी के सात सौ कूटनीति ' बहादुर सिपाहियों ने सिराजुद्दौला के तीन लाख सिपाहियों को हरा दिया ।* मालूम होता है मेहदीअली खाँ की बातों का ईरान के बादशाह पर खासा असर हुआ । सन् १७६८ की शरद ऋतु में बादशाह ने मेहदीअली खाँ को मिलने के लिए तेहरान बुलाया। मेहदीअली खाँ ने शाह और उसके दरबारियों को बड़ी बड़ी नज़रें देने में बहुत सा धन व्यय किया। निस्सन्देह यह सब धन भारत के कोष का था। इसके बाद मेहदीअली खाँ अपना काम करके बुशायर लौट आया। मेहदीअली ख़ाँ के काम को पक्का करने और अफगानिस्तान के विरुद्ध ईरान के साथ सन्धि करने के लिए कर्क पैट्रिक का सन् १७६8 के अन्त में मार्किस वेल्सली ने सर पत्र जॉन मैलकम को, जो उस समय कप्तान मैलकम था, अपना विशेष दूत नियुक्त करके ईरान भेजा। गवरनर- • History of Persta by Lueut. Colonel PM Sykes, vol 11, P 397