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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजी राज लगभग इन पिण्डारी डाकुओं ने अंगरेज़ी इलाके पर भी धावे मारने शुरू कर दिए । प्रॉण्ट डफ़ लिखता है- अंगरेज़ी इलाकों "कुछ समय तक यानी जब तक कि xxx ___पर धावे पिण्डारियों को अधिक उपजाऊ मैदानों में धावा मारने के लिए उत्तेजित नहीं किया गया, तब तक उनके धावे अधिकतर मालवा, मारवाड़, मेवाड़ और समस्त राजपूताना और बरार तक ही परिमित रहे । xx x किन्तु यदि पिण्डारियों को अपने धावों का क्षेत्र अधिक विस्तीर्ण करने के लिए उत्तेजित करने वाले और कारण न भी पैदा होते, तो भी अंगरेज़ सरकार की अधूरी चालों और स्वार्थमय नीति ( Selfish policy ) ने हिन्दोस्तान की जो हालत कर दी थी उसमें यह असम्भव था कि हिन्दोस्तान का कोई हिस्सा बहुत दिनों तक इनके लूट मार के धावों से बचा रहता।" पिण्डारियों के अंगरेज़ी इलाकों पर धावे शुरू कर देने के अनेक कारण हो सकते हैं । सम्भव है कि कुछ देशी नरेशों ने अंगरेजों ही की नीति का अनुकरण करके पिण्डारियों को अंगरेज़ी इलाकों पर धावा करने के लिए उत्तेजित किया हो, किन्तु अंगरेज़ों का देशी राजाओं की प्रजा के लुटने और कम्पनी की हिन्दोस्तानी प्रजा के लुटने दोनों में लाभ था, क्योंकि जब कि देशी नरेश अपनी प्रजा को सुखी और सुरक्षित रखने में अपना हित समझते थे, कम्पनी के शासकों को अपनी कुशल अपनी हिन्दोस्तानी प्रजा को निर्बल और भयभीत रखने में ही दिखाई देती थी। पिण्डारियों के अंगरेज़ी इलाकों पर हमलं शुरू कर देन का एक कारण यह