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भारत में अंगरेज़ी राज

८३६ भारत में अंगरेजी राज पिण्डारी दक्खिन भारत की एक पठान जाति थी। ये लोग श्रारम्भ सं दक्खिन के भारतीय नरेशों के यहाँ सेना में सवार हुआ करते थे । इनके प्रायः अपने घोड़े होते थे । हज़ारों पिण्डारी मराठों की सेनाओं में नौकर थे और मराठों के सबसे अधिक विश्वस्त और वीर सेनानियों में गिने जाते थे। मराठों और औरङ्गज़ेब के युद्धों में पिण्डारियों ने बड़ी वीरता के साथ औरङ्गज़ेब के विरुद्ध मराठी का साथ दिया। १७ वीं शताब्दी से लेकर १६ वीं शताब्दी के शुरू तक अनेक पिण्डारी सरदारों के नाम उस समय के इतिहास में प्रसिद्ध हैं। नसरू पिण्डारी शिवाजी का एक विश्वस्त जमादार था। एक दूसरा पिण्डारी सरदार सेनापति पुनापा उन दिनों मराठों का एक बड़ा भारी मददगार था। पेशवा बाजीराव पहले ने अधिकतर पिण्डारियों हो की सहायता से मालवा प्रान्त को विजय किया। उसके बाद होलकर और सींधिया दोनों की सेनाओं में हजारों पिण्डारी योद्धा और अनेक पिण्डारी सरदार शामिल थे। हीरा खाँ पिण्डारी और बुरान खाँ पिण्डारी माधोजी सींधिया के दो विश्वस्त और योग्य सेनापति थे। एक और प्रसिद्ध पिण्डारी सरदार चीतू को महाराजा दौलतराव सींधिया ने उसकी सेवाओं के बदले में नवाब की उपाधि और एक जागीर प्रदान कर रक्खी थी। दौलतगव सींधिया हो की सेना में एक और पिण्डारी सरदार करीम खाँ को भी नवाब की उपाधि और जागीर प्रदान की गई थी। पानीपत की तीसरी लड़ाई में एक पिण्डारी सेनापति हल