पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४२५

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प्रथम लॉर्ड मिण्टो ८२ अपना हित दिखाई देता था, और "प्रजा की जान माल की रक्षा" करने में उन्हें अपना अहित । भारतीय इतिहास के अंगरेज़ लेखक प्रायः गर्व के साथ लिखते हैं कि अंगरेज़ों के भारत श्रागमन के समय इस भंगरेजों के साथ देश में चारों ओर अराजकता और कुशासन का साथ अराजकता का प्रवेश ____ दौर था और विदेशियों ने श्राकर आपसी द मार काट और डाकुओं की लूट मार से भारत वासियों की रक्षा की। किन्तु इतिहास के पृष्ठ लौटने से कुछ दूसरा ही दृश्य देखने को मिलता है। मुगल साम्राज्य के अन्त के दिनों में, जब कि वह विशाल साम्राज्य सङ्कट की अवस्था में था, सम्राट के अनेक अनुचरों ने विविध प्रान्तों में अपने अपने लिए स्वतन्त्र बादशाहते कायम कर ली । इस प्रकार ही हैदराबाद में प्रासफ़- जाह और अवध में सादत खाँ ने अपनी अपनी सल्तनते कायम की। लड़ाइयाँ और रक्तपात भी उस समय भारत में अवश्य हुश्रा, क्योंकि बिना लड़ाइयों और रक्तपात के नई सल्तनते कायम नहीं हो सकतीं। किन्तु इतिहास से पता चलता है कि ईसा की १७ वीं सदी में या १६वीं सदी के श्रारम्भ में जितनी लड़ाइयाँ और जितना रक्तपात भारत में हुआ है उससे यूरोप में कहीं अधिक हुश्रा है । इसके अतिरिक्त मुगल साम्राज्य के समय की समृद्धि का तो ज़िक्र ही क्या, जिसे देखकर यूरोप और बाकी सब संसार के यात्री चकित रह जाते थे; किन्तु इन समस्त नई सल्तनतों के कायम करने वाले मराठे, राजपूत और मुसलमान नरेश भी अपनी प्रजा