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भारत में अंगरेज़ी राज

२० भारत में अंगरेजी राज किया, उसी कपटी स्वेच्छाशासन के ज़रिये भारतवासियों को ईसाई बनाने का भी उद्योग किया गया। उस समय के ईसाई शासक ईसाई मत प्रचारकों को हर तरह की सुविधा और सहायता देते थे । पादरी लोग जहाँ कहीं जाना चाहते थे, अंगरेज़ सरकार से उन्हें पासपोर्ट मिल जाते थे। उनके नोटिस, प्रचार पत्रिकाएँ आदिक सब सरकारी छापेखानों में मुफ्त छाप कर दी जाती थीं। किले के अन्दर भारतीय सिपाहियों में प्रचार करने की उन्हें ख़ास सुविधाएँ दी गई थीं। अपने काम के लिए उन्हें मुफ़्त बड़ी बड़ी जमीने दे दी गई थीं। त्रिवानकुर जैसी देशी रियासतों में भी राजाओं और दीवानों के ऊपर जोर देकर ईसाई मत प्रचार के लिए खास सुविधाएँ करा दी जाती थीं। इत्यादि ।* धीरे धीरे मद्रास प्रान्त की हिन्दोस्तानी सेना को श्राज्ञा दी गई कि कोई सिपाही परेड के समय या ड्यूटी पर या वरदी पहने हुए अपने माथे पर तिलक श्रादि धार्मिक चिह्न न लगाए, और न कानों में बालियाँ पहने, हिन्दू, मुसलमान सब सिपाहियों को हुकुम दिया गया कि अपनी डाढ़ियाँ मुंड़वा दें और सब लोग एक तरह की कटी हुई मूछ रक्खे, इत्यादि । • Revd Sydney Smith in the Edinburgh Renew for 1807, on 'The Conversion of India +" not (to) mark his face to denote his caste, or wear earrings, when dressed in his uniform , and it is further directed that at all parades, and upon all duties, every soldier of the battalion shall be clean-shaved on the chin It is directed also that uniformity shall be preserved in regard to the quantity and shape of the hair upon the upper lip, as far as may be practicable "-Instructions to the Madras Sepoys, 1806