पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४११

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दूसरे मराठा युद्ध का अन्त

दूसरे मराठा युद्ध का अन्त ८१५ जसवन्तराव होलकर और भरतपुर के राजा का व्यवहार अत्यन्त सराहनीय और भारत के भविष्य की दृष्टि से गौरवान्वित और हितकर रहा । युद्ध के शुरू में जसवन्तराव होलकर की भूले अत्यन्त खेदकर थीं। यदि जसवन्तराव अंगरेजों के हाथों में खेल कर उनकी सहायता न करता तो अंगरेज़ कदापि सबसीडोयरी सन्धि का जुत्रा पेशवा के कन्धों पर न लाद सकते। उसके बाद भी यदि जसवन्तराव मराठा मण्डल के एक सदस्य की हैसियत से अपना कर्तव्य पूरा करता और अंगरेजों के बहकाए में आकर सोंधिया और भोसले की आपत्तियों की ओर से तटस्थ न हो बैठता तो अंगरेज असाई, अरगाँव और लसवाड़ी के मैदानों में सींधिया और बरार के राजा को कभी पगस्त न कर पाते और न उनके इलाके छीन सकते। फिर भी इसके बाद सं ज्योंही जसवन्तराव ने अनुभव किया कि अंगरेज़ मुझसे केवल अपना काम निकाल रहे थे और अन्दर ही अन्दर मेरी जड़े खोदने की तैयारियाँ कर रहे थे, तो उसे अपनी भूलों पर हार्दिक पश्चात्ताप हुश्रा । उस समय से ही उसने अंगरेज़ों के साथ जम कर युद्ध करने का सङ्कल्प कर लिया । और यदि असाई, अरगाँव और लसवाड़ो की विजयों के बाद जसवन्तराव अंगरेज़ो के मार्ग में न पाया होता और लगातार एक वर्ष से ऊपर तक उन पर हार पर हार न लादता तो मार्किस वेल्सली और उसके साथियों के हौसले दुगने हो गए होते। राजपूताना और मध्यभारत की रियासतों को हड़पने के बहाने ढूंढ़ लेना कुछ कठिन था, लिखों की ताकत उस समय इतने