म१४ भारत में अंगरेजी राज वापस दे दिया गया और जसवन्तराव को अपने पूरे राज का अनन्य और स्वाधीन नरेश स्वीकार कर लिया गया, अर्थात् इस युद्ध से होलकर की स्वाधीनता या उसके राज के क्षेत्रफल में तनिक भी अन्तर न आया। इस प्रकार ले देकर दूसरे मराठा युद्ध का अन्त हुश्रा । इस युद्ध से मार्किस वेल्सली का वास्तविक उद्देश छ पूरा न हो सका, अर्थात् मराठों की सत्ता का का परिणाम - सर्वथा अन्त न हो सका। सिवाय पेशवा के और कोई मराठा नरेश सबसीडीयरी सन्धि के जाल में भी न फंस सका। किन्तु मराठों की ताकत को सदा के लिए एक बहुत बड़ा धक्का पहुँच गया; और पेशवा, सींधिया और बरार के राजा, इन तीनों नरेशों के कुछ अत्यन्त उपजाऊ इलाके उनसे सदा के लिए छीन लिए गए। कूटनीति और भेदनीति में अंगरेज़ों का पल्ला भारी रहा, किन्तु वीरता या युद्ध कौशल में वे मराठों और अन्य भारतीयों के मुकाबले में तुच्छ साबित हुए। यही दूसरे मराठा युद्ध का सार है। __ दूसरे मराठा युद्ध में भाग लेने वाले धुरन्धर भारतीय नीतिज्ञ भारतीय स्वाधीनता के बढ़ते हुए क्षय और इस देश में अंगरेज़ी राज की नीवों के दिन प्रतिदिन अधिकाधिक मजबूत होने को न रोक सके, जिसका एक मात्र कारण भारतीय नरेशों में एक दूसरे पर अविश्वास और भारतवासियों में राष्ट्रीयता के भावों का शोकजनक अभाव था; फिर भी इस युद्ध के अन्त के दिनों में
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भारत में अंगरेज़ी राज