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भारत में अंगरेज़ी राज

२१२ भारत में अंगरेजी राज उसने x x x एक ऐसे चतुर और कुशल मध्यस्थ को खोजना शुरू किया 'जिसे होलकर के नेमे में भेजा जाय और जिसके जरिये सुलह की बातचीत छेड़ी जाय । x x x"8 जनरल लेक का डर और जसवन्तराव होलकर की आशाएँ . बेमाने न थीं। काबुल का बादशाह उस समय जसवन्तराव और भारत पर हमला करने की धमकी अंगरेजों को न महाराजा रणजीत सिंह " दे चुका था और महाराजा रणजीतसिंह और पञ्जाब के अन्य कई राजा नाम के लिए काबुल के बादशाह के मातहत थे। किन्तु रणजीतसिंह और अन्य सिख राजाओं के साथ अंगरेजों की गुप्त साज़िशे पहले से जारी थीं। ऊपर के अभ्यायों में दिखाया जा चुका है कि महाराजारणजीतसिंह वीर किन्तु अदूरदर्शी था और इसी कारण सदा अंगरेजों के हाथों में खेलता रहा । बल्कि मराठी का पतन और सिखों का अंगरेजों को मदद देना, ये दो ही सिखों की राजनैतिक उन्नति के मुख्य कारण थे । इस समय अंगरेज़ सिखों पर दो बातों के लिए सब से अधिक ज़ोर दे रहे थे। एक यह कि श्राप काबुल नरेश के साथ अपना सम्बन्ध तोड़ दें और दूसरे यह कि मराठों को अंगरेजों के the General ( Lake) saw himself that, if Ranjit Singh with the Patiyala chief and other Sirdars of this country, were to make common cause with the Maharaj ( Holkar), a new flame would be lighted up, which it would be difficult to extinguish He accordingly looked out for an intelligent skilfol negotiator to be sent to Holkar's camp, and to be made the channel for an overture, "-Autobiography of Amir Khan p 286.