दूसरे मराठा युद्ध का अन्त ८०५ की ओर बढ़ा। १६ सितम्बर सन् १८०५ को उसने जनरल लेक के नाम इस सम्बन्ध में एक विस्तृत पत्र लिखा। महाराजा दौलतराव सींधिया के साथ अंगरेजों के मुख्य झगड़े इस समय येथे :- (१) रेज़िडेण्ट जेनकिन्स को दौलतराव ने अपने यहाँ कैद कर रक्खा था और अंगरेज़ उसकी रिहाई पर जोर दे रहे थे। (२) ग्वालियर और गोहद अभी तक अंगरेजों के हाथों में थे और सींधिया उन्हें वापस मांग रहा था। (३) युद्ध के शुरू में धौलपुर, बारी और राजकेरी के जिले अंगरेजों के कब्जे में श्रा गए थे और अंगरेज़ ही वहाँ की माल- गुज़ारी वसूल करते थे। पिछली सन्धि के अनुसार ये सब जिले सींधिया को वापस मिल जाने चाहिए थे, किन्तु अंगरेजों ने अभी तक उन्हें वापस न किया था। (४) महाराजा जयपुर की ओर से करीब तीन लाख रुपया सालाना खिराज सोंधिया को मिला करता था। यह खिराज अब ऊपर ही ऊपर अंगरेज वसूल कर रहे थे। और कई छोटी छोटी बातें थीं जिनका हल करना इतना अधिक कठिन न था। लॉर्ड कॉर्नवालिस ने १६ सितम्बर के पत्र में जनरल लेक को साफ़ साफ़ लिख दिया कि सींधिया से इन शर्तों पर मैं सुलह कर लेने को तैयार हूँ :-
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दूसरे मराठा युद्ध का अन्त