पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४००

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८०४
भारत में अंगरेज़ी राज

८०४ भारत में अंगरेज़ी राज के दिनों में सींधिया और बरार के राजा के विरुद्ध जनरल लेक और जनरल वेल्सली को विजयों का समाचार सुन कर लॉर्ड कॉर्नवालिस ने इङ्गलिस्तान से बैठे हुए ३० अप्रैल सन् १८०४ को माक्विस वेल्सली को लिखा था- ___ "अपने मित्रों जनरल लेक और जनरल वेल्सली की महत्वपूर्ण और गौरवान्वित विजयों से मुझे प्रस्थन्त सच्चा सन्तोष हुआ है xxx। _ " x x x मैं सच्चे जी से चाहता हूँ कि जिस सरह के योग्य नीतिज्ञों और चतुर सेनापतियों के सुपुर्द हाल में हमारे एशियाई साम्राज्य के संरक्षण का भार रहा है, उसी तरह के योग्य नीतिज्ञ पृथ्वी के हर भाग में मेरे देश के हितों को बढ़ावें और ऐसे ही चतुर सेनापति समस्त पृथ्वी पर मेरे देश की सेनाएँ लंकर जायें । " किन्तु कम्पनी की आर्थिक कठिनाइयों, होलकर और सींधिया के विरुद्ध विजय की दुराशा, और भावी पराजयों की से अंगरेजी राज के सर्वनाश के भय ने लॉर्ड उत्सुकता कॉर्नवालिस को विवश कर दिया कि भारत पहुँचते ही सबसे पहले वह युद्ध बन्द करने का प्रयत्न करे। अगस्त सन् १८०५ को कॉर्नवालिस कलकत्ते से पश्चिमोत्तर प्रान्तों

  • “ The important and glorious achievements of my friends, General

Lake and Wellesley, have afforded me the most sincere satisfaction I earnestly hope that, in every part of the globe, its (my country's) interests will be promoted by as able statesmen, and its (my country's) armies conducted by as mentorious generals, as those who have of late been entrusted with the preservation of our Asiatic Empire"