पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३९७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
८०१
दूसरे मराठा युद्ध का अन्त

दूसरे मराठा युद्ध का अन्त ८०१ मांग रहा था । करीब पाँच लाख रुपए माहवार जनरल लेक की अपनी सेना की तनखाहों का खर्च था, और इसके अलावा जनरल लेक के "गुप्त उपार्यो" से भारतीय नरेशों के जो सिपाही अपने मालिकों के साथ विश्वासघात करके कम्पनी की ओर पा गए थे, उनका खर्च करीब छ लाख रुपए माहवार का था; और जब कि भारतीय ब्रिटिश सरकार क़ज़ौ में डूबी हुई थी, ये सब तनखाहे इस समय कई महीनों से चढ़ी हुई थीं।। इसके अतिरिक्त सम्राट शाहआलम को वश में रखने और दिल्ली पर कब्ज़ा रखने के लिए कम्पनी को दिल्ली में एक बड़ी सेना रखनो पड़ती थी, जिसके बदले में कम्पनी को एक पाई श्रामदनी के रूप में न मिलती थी। स्वयं इंगलिस्तान के अन्दर कम्पनी के जिम्मे कर्जा बढ़ता जा . रहा था। पार्लिमेण्ट के अन्दर २५ फ़रवरी सन् शोषण के नमूने १८०६ को मि० पॉल ने पालिमेण्ट के सदस्यों को यह सूचना दी:- "सन् १७६३ के कानून के अनुसार, भारत के फौजदारी और दीवानी • Lord Corn wallis' letter to Lord Castlereagh, 1st August, 1805 + " Lake's army, the pay of which amounts to about five lacs per month, is above five months in arrears An army of irregulars, composed chiefly of deserters from the enemy, which with approbation of Government, the General assembled by proclamation, and which costs about six lacs per month, is likewise somewhat in arrear"-Lord Cornwallhs to Lord Castlereagh, August 9th, 1805 Lord Cornwallis to Colonel Malcolm, 14th August, 1805