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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजी राज करना स्वीकार न किया, फिर भी मुन्शी कमलनयन की चालों और इन नरेशों के पुराने परस्पर अविश्वास ने इतना असर अवश्य किया कि दौलतराव सींधिया बजाय भरतपुर पहुँचने के आठ मील पीछे हट कर अपनी सेना सहित सब्बलगढ़ में ठहर गया। जसवन्तराव होलकर और भरतपुर के राजा दोनों ने पिछले युद्ध में सींधिया के विरुद्ध अंगरेजों का साथ दिया था और इसमें सन्देह नहीं कि उस दुर्घटना की याद ने जीन बेप्टिस्टे और मुन्शी कमलनयन के कार्य को बहुत सुगम कर दिया। दौलतराव सोंधिया के अतिरिक्त राघोजी भोसले के भी . जसवन्तराव की मदद के लिए पहुँच जाने का राघोजी भोसले अंगरेजों को डर था। अब हमें यह देखना होगा के साथ कि उन्होंने किस प्रकार राजा राघोजी भोसले को जसवन्तराव होलकर की मदद कर सकने के अयोग्य बनाए रक्खा। जिस तरह अंगरेजों ने सींधिया के साथ सन् १८०३ की.सन्धि को तोड़ कर ग्वालियर और गोहद के इलाके उससे बलपूर्वक छीन लिए थे, उसी तरह बरार राज के कई उपजाऊ प्रान्त उन्होंने सन्धि के विरुद्ध अपने कब्जे में कर लिए और राजा राघोजी भोसले से उसकी स्वीकृति पर ज़बरदस्ती दस्तखत कराने चाहे । राजा राघोजी ने इस अन्याय का विरोध किया । २४ मार्च सन् १८०५ को गवरनर जनरल ने डाइरेक्टरों के नाम बरार के इन प्रान्तों के विषय में लिखा:- अन्याय