भरतपुर का मोहासरा ७८५ अंगरेजों को अब सबसे अधिक चिन्ता इस बात की थी कि __कहीं दौलतराव सींधिया जसवन्तराव की मदद जीन बेप्टिस्टे के लिए भरतपुर न पहुँच जाय। सींधिया के के साथ अंगरेजों र श्रादमियों के साथ साज़िशे शुरू की गई। सींधिया की सेना के अधिकांश यूरोपियन अफ़सर गत युद्ध के समय अंगरेजों से मिल गए थे। फिर भी सीधिया के दुर्भाग्य और उसकी अदूरदर्शिता के कारण एक ईसाई अफ़सर जीन बेप्टिस्टे फ़िलॉस, जिसका ज़िक्र ऊपर भी पा चुका है, अभी तक सींधिया की सेना में एक ऊंचे ओहदे पर नियुक्त था। जीन बेप्टिस्टे के अनेक सम्बन्धी भी सेना के अनेक पदों पर नौकर थे। जनरल लेक ने जीन बेप्टिस्टे के साथ और उसके द्वारा दूसरों के साथ साज़िशे शुरू की। माक्विस वेल्सली के नाम २२ सितम्बर सन् १८०४ को एक “प्राइवेट" पत्र में जनरल लेक ने आगरे से लिखा- ___“जीन बेप्टिस्टे x x x मेरे पास आ जाना चाहता है, किन्तु अपनी मौज को देने के लिए डेढ़ लाख रुपए माँगता है । कहा जाता है कि प्रादमी अच्छा और ईमानदार है, और हाल में उसके पत्र व्यवहार से जो कुछ मैं देख पाया हूँ उससे जाहिरा ऐसा ही मालूम होता है; किन्तु उसे रुपया देने से पहले मुझे उसके ईमानदार होने का अधिक विश्वास होना चाहिए। कम से कम इतना रुपया तो नहीं; यदि वह कोई खास काम करके दिखाए तो फिर उसे रुपया देने का भी काफ़ी मौका रहेगा ।" • "Jean Baptiste is desirous of coming to me but requiress पू०
पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३८१
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
७८५
भरतपुर का माहासरा