भारत में अंगरेजी राज टीपू का मुख्य सलाहकार इस समय उसका एक दीवान मीर सादिक़ था। भोले टीपू को बहुत देर तक इसका विश्वासपातकों पता न चल सका कि यह मीर सादिक भी की सूची " उसके दुश्मनों से मिला हुआ था। यहां तक कि मीर सादिक ने टीपू के एक विश्वस्त अफसर गाजी खां को कत्ल करवा दिया और किले के दीवारों के टूट जाने पर भी टीपू से इस खबर को छिपाए रक्खा । अन्त में जब टीपू को अपने कुछ विश्वस्त श्रादमियों द्वारा इन बातों का और मीर सादिक और उसके अन्य साथियों के विश्वासघात का पता चला, टीपू ने एक दिन सुबह को अपने हाथ से विश्वासघातकों की एक लम्बी सूची तैयार करके मीर मुईनुद्दीन के हाथ में दी और उसे श्राज्ञा दी कि श्राज ही रात को इन सब नमकहरामों का, जिस तरह हो काम तमाम कर दिया जावे। अकस्मात् जिस समय मोर मुईनुद्दीन ने इस सूची को खोल कर पढ़ना चाहा, महल का एक फ़र्गश, जो पढ़ना जानता था और मीर सादिक से मिला हुआ था, मीर मुईनुद्दीन के पीछे खड़ा हुआ था। इस फर्राश ने मीर सादिक का नाम सूची में सबसे ऊपर पढ़ कर फोरन जाकर मीर सादिक को इसकी खबर दे दी। मीर सादिक सावधान हो गया। उसी दिन सुलतान टीपू ने घोड़े पर चढ़कर किले की चहार- ज्योतिषियों की दीवारी का निरीक्षण किया, टूटी हुई दीवारों कोन मोई की मरम्मत का हुक्म दिया और ऐन एक
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भारत में अंगरेज़ी राज