पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३४६

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भारत में अंगरेज़ी राज

७५४ भारत में अंगरेजी राज किन्तु जो कुछ ये कहते हैं उस पर मुझे बहुत कम विश्वास है, फिर भी उनमें किसी तरह का भी प्रसन्तोष होना अपना असर रखता है और हमारे काम मा सकता है, इसलिए उन्हें भड़का कर उनमें असन्तोष पैदा किया जायगा।" रहा भारतीय नरेशों को अपनी ओर तोड़ सकना, उनमें सीधिया के अतिरिक्त अन्य नरेशों का भी विश्वास भरतपुर का राजा अंगरेजों के ऊपर से उठ गया था। अपने अनुचित व्यवहारों के कारण जिनका ज़िक्र आगे चलकर किया जायगा, अंगरेजों को बरार के राजा पर भी विश्वास न हो सकता था। भरतपुर का राजा महाराजा सींधिया का सामन्त था। फिर भी सन् १८०३ में अंगरेज़ों ने महाराजा सींधिया और राजा राघोजी भोसले के विरुद्ध भरतपुर के राजा रणजीतसिह के साथ इस शर्त पर सन्धि कर ली थी कि जो सालाना खिराज तुम सींधिया को दिया करते थे, वह आइन्दा के लिए बिलकुल माफ़ कर दिया जायगा। इसी सन्धि के कारण राजा रणजीतसिंह अंगरेजों के विरुद्ध सींधिया और भोसले को सहायता देने से भी रुका रहा। इस बार फिर गवरनर जनरल ने होलकर के विरुद्ध भरतपुर के राजा से सहायता प्राप्त करने की कोशिश की । २२ अगस्त सन् १८०४ को मार्किस वेल्सलो ने जनरल लेक को लिखा :- "x x x मैं इस पत्र द्वारा आपको अधिकार देता हूँ और हिदायत करता हूँ कि आप अस्यन्त स्पष्ट शब्दों में भरतपुर के राजा को विश्वास दिला दीजिये कि अंगरेज़ सरकार इस बात का निश्चय कर चुकी है कि भरतपुर के साथ मौजूदा सन्धि की सब शर्तों को ठीक ठीक और समय पर पूरा करे।