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भारत में अंगरेज़ी राज

७५० भारत में अंगरेज़ी राज्य अंगरेजों के इस समय तक के व्यवहार को देखते हुए काफ़ी घृणा उत्पन्न हो चुकी थी। सदाशिव भाऊ भास्कर और उसकी सेना ने मॉनसन को किसी तरह की सहायता न दी। मजबूर कुशलगढ़ को भी अपने लिए कुशल का स्थान न पा, २६ अगस्त की रात को मॉनसन वहां से भागरे को ओर भागा। मार्ग में होलकर के कुछ सवारों के साथ मॉनसन की कई छोटी छोटी लड़ाइयाँ हुई, जिनमें बहुत कुछ हानि सहते हुए भागते भागते अन्त मे ३१ अगस्त सन् १८०४ को अपने रहे सहे श्रादमियों सहित मॉनसन आगरे पहुँच गया। मुकन्दरा दर्रे से लेकर आगरे तक की इस भगदड़ और लगातार हारों में अंगरेज़ कम्पनी का केवल जानों का जो नुकसान हुआ उसे जनरल लेक ने पर लेक का पत्र गवरनर जनरल के नाम २ सितम्बर के एक "प्राइवेट" पत्र में इस प्रकार वर्णन किया है- "इस लज्जाजनक और घातक घटना के विषय में इस समय मैं और कुछ न कहूँगा, क्योंकि अनेक कारणों से मेरा चित्त इतना उद्विग्न है कि मैं इस दुर्घटना की हानियों और उसके कारणों को बयान नहीं कर सकता। इससे अधिक सुन्दर सेना ने कभी कूच न किया होगा, और मुझे यह कहते हुए दुख होता है कि यदि फिटनेण्ट ऐण्डरसन का बयान ठीक है, तो मेरी सेना का सर्वश्रेष्ठ भाग अर्थात् पाँच पूरी पलटने और छै कम्पनियाँ बिलकुल मिट गई और केवल परमात्मा ही जानता है कि अब उनकी जगह किस प्रकार पूरी हो सकेगी, साथ ही (अनसरों में ) मुझे आज सेना के कुछ जय