पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३३५

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भारत में अंगरेज़ी राज

७४४ भारत में अंगरेज़ी राज में फंस गई कि उन्हें निकालना असम्भव हो गया। उधर पास के प्रामों में रसद का पता न था । जीवित रहने के लिए आगे बढ़ना आवश्यक था । मजबूर होकर मॉनसन ने अपने साथ के गोले बारूद को वहीं श्राग लगा दी, और तोपों को यथासम्भव बेकार करके बूंदी के राजा के हवाले छोड़ दिया। लिखा है कि यद्यपि बूंदी का राजा तोपों के निकालने में अंगरेज़ों को मदद न दे सका, फिर भी उसका व्यवहार उनके साथ मित्रता का था। किन्तु चम्बल नदी के ऊपर ही बापूजी सींधिया ने मॉनसन का साथ छोड़ दिया। कारण यह था कि बापूजी सोंधिया मॉनसन का व्यवहार इस सारे समय में बापूजी का प्रात्म समर्पण सींधिया के साथ अत्यन्त रूखा रहा। बापूजी सींधिया को सदा शत्रु के सामने करके मॉनसन स्वयं पीछे रहता था । बापूजा की काफ़ी हानि भी हो चुकी थी। इसके अतिरिक्त बापूजी की सेना को भारी आर्थिक कष्ट था, उनकी तनख्वाहें चढ़ी हुई थीं और बापूजी के अनेक बार कहने पर भी मॉनसन ने उन्हें धन या रसद की सहायता देने से इनकार किया। इस सबसे बढ़कर मॉनसन के चम्बल पार करने के समय बापूजी की सेना अभी इस ओर ही थी, नदी चढ़ी हुई थो, बापूजी ने मॉनसन से प्रार्थना की कि श्राप पार पहुँच कर किश्तियों को वापिस कर दे, ताकि हम लोग पार जा सके। किन्तु मॉनसन ने न जाने किस विचार से किश्तियों को वापस तक न किया। सम्भवतः मॉनसन के चित्त में बापूजी सींधिया की ओर से शुरू से अविश्वास था।