जसवन्तराव होलकर ७४३ जुलाई के दोपहर को होलकर राज की सरहद पर पहुँच कर दम लिया। मैदान सर्वथा होलकर के हाथों में रहा। __इतनी विशाल अंगरेज़ी सेना की इस लज्जाजनक पराजय का मुख्य कारण निस्सन्देह यह था कि जनरल लेक के "गुप्त उपाय" जसवन्तराव होलकर की सेना में न चल पाए थे। जसवन्तराव होलकर मॉनसन का बराबर पीछा करता रहा। ११ जुलाई को उसने सरहद पर पहुँच कर जसवन्तराव को मॉनसन और उसकी बाकी सेना पर फिर हमला दूसरी विजय किया। दूसरी बार मैदान गरम हुआ, जिसके अन्त में अपने असंख्य मुदौ और घायलों को मैदान में छोड़ कर रातोरात जनरल मॉनसन को कोटा राज की ओर भाग जाना पड़ा। १२ जुलाई को मॉनसन कोटा पहुँचा। कोटा के राजा ज़ालिमसिंह से मॉनसन को सहायता की प्राशा . थी, किन्तु उसने भी साफ़ इनकार कर दिया। अंगरेजी सेना की उसी दिन मॉनसन ने बूंदी की रियासत से भगदड़ " होकर चम्बल नदी को पार कर रामपुरा पहुँचने का इरादा किया। ज़ोर की बारिश के कारण चम्बल को पार करना अत्यन्त कठिन हो गया था। इसलिए १४ जुलाई को श्रास पास के ग्रामों से रसद जमा करने के लिए मॉनसन को चम्बल के इस पार ठहरना पड़ा। इतिहास लेखक प्रॉण्ट डफ ने मॉनसन की सेना की इस भगदड़ और उसके कष्टों को विस्तार के साथ बयान किया है। १५ जुलाई को मॉनसन की तोपें इतनी बुरी तरह कीचड़
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जसवन्तराव होलकर