पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३३१

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भारत में अंगरेज़ी राज

७४० भारत में अंगरेज़ी राज ___ सींधिया की प्रार्थना बिलकुल उचित थी, किन्तु माक्विस वेल्सली और रेजिडेण्ट वेब ने इसे भी स्वीकार न किया। इतने पर भी दौलतराव सींधिया या तो अपनी उस समय की स्थिति से विवश था, या जसवन्तराव के विरुद्ध उसके हृदय में काफी द्वेष था, या वह मार्किस वेल्सली के नए वादों के लोभ में ा गया। जिस तरह हो, उसने बापूजी सोंधिया और सदाशिवराव के अधीन छै या सात पलटन पैदल और दस हज़ार सवार जमा करके ठीक समय पर जनरल मॉनसन की सहायता के लिए भेज दिए । सींधिया को पूरी श्राशा थी कि जब यह सेना मॉनसन की सेना के साथ मिल जायगी तो अंगरेज़ उसके खर्च, रसद इत्यादि का समस्त प्रबन्ध कर दगे। किन्तु जनरल लेक या जनरल मॉनसन ने सींधिया की इस सेना की आवश्यकताओं की ओर ज़रा भी ध्यान न दिया। बापूजी सींधिया जब किसी तरह अपनी सेना की रसद का प्रबन्ध न कर सका तो विवश होकर उसने अपनी सेना का एक भाग, कुछ सवार और कुछ पैदल, सदाशिवराव के अधीन रसद की तलाश में दूसरी ओर रवाना कर दिया, और स्वयं अपनी शेष सेना सहित जनरल मॉनसन की सहायता के लिए उसके साथ रहा। पहली जुलाई सन् १८०४ को जनरल मॉनसन ने अपनी इस _ विशाल सेना सहित मुकन्दरा के पहाड़ी दर्रे से मॉनसन को होकर होलकर के इलाके में प्रवेश किया। सेना २ जुलाई को इस सेना ने हिङ्गलासगढ़ के किले