टीपू सुलतान ४६१ एक बाजाब्ता कमीशन नियुक्त किया। इस समय के पनों से जाहिर है कि टीपू के विरुद इससे पहले के युद्ध में मी कॉर्नवालिस इस तरह के उपायों को काम में ला चुका था। __ मीर हुसेनअली खां किरमानी ने अपनी फ़ारसी पुस्तक "निशानए हैदरी" में खाले विस्तार के साथ बयान किया है कि किस तरह कम्पनी की सेनाओं ने एकाएक चारों ओर से टीपू को जा घेरा, किस तरह वीरता और पान के साथ टीपू ने मरते दम तक शत्रुओं का मुकाबला किया और किस तरह टीपू के दरबार और उसकी सारी सेना को विश्वासघातको से छलनी छलनी करके अन्त में अंगरेजों ने विजय प्राप्त की। उस पुस्तक से पता चलता है कि इस युद्ध में निज़ाम और . उसके वजीर मीर आलम ने अंगरेजों को फिर टीपू पर चारों ओर र खूब सहायता दी। चार हज़ार सेना मद्रास से से हमला " जनरल हैरिस के अधीन थी। चार हजार सबसीडीयरी सेना हैदराबाद से पाकर मिली। दो हजार सेना बंगाल की थी। आठ हजार सवार मीर आलम के अधीन थे और हैदराबाद ही के छ हजार सवार रोशनराव के अधीन थे। कुछ सेना बम्बई से आई । इस तरह कुल मिलाकर करीव ३० हज़ार सेना ने चारों ओर से टीपू पर एक साथ चढ़ाई की। इस युद्ध के विविध संग्रामों को बयान करने के बजाय हम केवल युद्ध के उस पहलू को संक्षेप में बयान करेंगे, जो वास्तव में टीपू के नाश और अंगरेजों की सफलता का कारण हुआ। सबसे
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टीपू सुल्तान