पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३२३

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भारत में अंगरेज़ी राज

•७३२ भारत में अंगरेजी राज दूर दूर तक आबादी और खेती का निशान तक न मिलता था। सोंधिया के तहसीलदारों ने बार बार अंगरेज़ अफ़सरों का ध्यान इस ओर दिलाया और सन्धि की शतों के अनुसार उनसे मदद चाही, किन्तु किसी ने उनकी प्रार्थनाओं पर ध्यान न दिया। मजबूर होकर महाराजा दौलतराव ने स्वयं अपनी सेना इन उपद्रवों को शान्त करने के लिए भेजनी चाही, किन्तु अंगरेज़ों ने सन्धि की शर्त सामने लाकर एतराज़ किया । दौलतराव दोनों तरह से लाचार हो गया। उसने बार बार इन बातों की सूचना गवरनर जनरल और जनरल लेक दोनों को दी। किन्तु दोनों ही लगातार इस विषय में टालमटोल करते रहे। इस स्थिति में होलकर के विरुद्ध सोंधिया से सहायता ले लेना इतना आसान न था । मार्किस वेल्सली ने अब दौलतराव सोंधिया को धोखा देने और भुलावा होलकर के विरुद्ध उससे सहायता प्राप्त करने का एक और उपाय निकाला। उसने आगामी युद्ध के विषय में बड़े ज़ोर के साथ अंगरेज़ों की निस्स्वार्थता और परोपकारिता का एलान किया और लिखा किः- ___डोलकर की शक्ति को परास्त कर देने के बाद मेरा इरादा यह नहीं है कि होलकर कुल का कोई भी इलाका कम्पनी के कब्जे में किया जाय । चान्दोर और उसके मातहत और आस पास का इलाका सम्भवतः पेशधा को दे दिया जायगा; गोदावरी के दक्खिन के होलकर के दूसरे इलाके दक्खिन के -सूबेदार ( निज़ाम ) को दिए जायँगे; और होलकर के बाकी सब इलाके सीधि मुजावा