७२४ भारत में अंगरेजी राज भी यह एक विचित्र बात अवश्य है कि ब्रिटिश भारत के इतिहास में जब कभी भी अंगरेजों के चित्त में किसी भारतीय नरेश के साथ युद्ध करने की इच्छा उत्पन्न हुई है तब तब ही इस प्रकार के पत्र कहीं न कहीं से उनके हाथ आगए हैं। कई सूरतों में इस तरह के पत्र पूरी तरह जाली साबित भी हो चुके हैं। जनरल लेक के आयरलैण्ड और भारत के शेष चरित्र को देखते हुए जसवन्तराव होलकर के इन पत्रों या उनके उत्तरों का जाली होना कोई आश्चर्य की बात नहीं हो सकती। अधिक सम्भावना यही है कि यह समस्त पत्र व्यवहार जाली था। जो हो ४ अप्रैल सन् १८०४ को लेक ने यह पत्र व्यवहार गवरनर जनरल के पास भेजा और उसके साथ ही गवरनर जनरल को यह सूचना दी कि मैं उत्तर की ओर खास मोरचों पर सेनाएँ जमा करने वाला हूँ। वास्तव में यह एक प्रकार से होलकर के साथ युद्ध की प्रस्तावना थी। जसवन्तराव होलकर ने कोशिश की कि किसी तरह शान्ति द्वारा सब मामले का निबटारा हो जाय । उसकी मांगों में कोई भी बात न्याय के विरुद्ध न थी। वह अंगरेजों से केवल उनके वादों की पूर्ति चाहता था। २७ मार्च सन् १८०४ को उसने जनरल लेक को एक पत्र लिखा, जिसमें उसने जनरल लेक का ध्यान फिर जनरल वेल्सली के वादों की ओर दिलाया। उन वादों की पूर्ति चाही और लिखा- "xxx निस्सन्देह मित्रता का सम्बन्ध पत्रों के माने जाने अथवा जसवन्तराव का
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भारत में अंगरेज़ी राज