टीपू सुलतान ave दोष नया कर उसे मिटा देने पर कटिबद्ध थे। पराजित शत्रु की ओर उदारता दिखलाना एशियाई नरेशों का सदा से एक मास गुण रहा है, किन्तु अनेक बार उन्हें इस उदारता का गहरा मूल्य चुकाना पड़ा है। ३ फरवरी सन् १७६४ को कम्पनी को सेना टीपू के राज की ओर बढ़ी। टोपू इस युद्ध के लिए तैयार न था। युद्ध का एलान १३ फरवरी को उसने वेल्सली को पत्र लिखा कि मामले को शान्ति से तय करने के लिए मेजर डवटन को मेरे दरबार में भेज दिया जाये । इसके बाद भी कई बार टीपू ने प्रार्थना की कि पहले बातचीन से मामले को तय करने की कोशिश कर ली जावे। किन्तु वेल्सली ने इन प्रार्थनाओं को ओर कुछ भी ध्यान न दिया। २२ फरवरी को टीपू के साथ युद्ध का एलान कर दिया गया। कम्पनो की सेनाएँ जनरल हैरिस के अधीन थीं । जल और स्थल दोनों ओर से टीपू को घेर लिया गया। विवश होकर टीपू ने भी वीरता के साथ मुकाबले का निश्चय किया। वेल्सली जानता था कि बावजूद इतनी तैयारी के कम्पनी की सेना का टीपू को परास्त कर सकना इतना का सरल न था। इसलिए उसने कम्पनी की प्राचीन प्रथा के अनुसार टीपू के अफसरों और उसकी प्रजा के साथ पहले हो से गुप्त साजिशें शुरू कर दी थी। वेल्सली ने मद्रास के गवरनर हैरिस को लिखा :- "मेरे पास बा मानने के लिए काफी वजह है कि टीपू सुखतान के बहुत विश्वासघातका आल
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टीपू सुल्तान