पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३००

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साम्राज्य विस्तार

साम्राज्य विस्तार नहीं है। माकित वेल्सली महाराजा दौलतराव सींधिया और राजा राघोजी भोसले दोनों का पूरा सर्वनाश करना चाहता था। किन्तु यह इस समय असम्भव दिखाई दिया। अंगरेज़ों का खर्च भी खासकर रिशवतों में बेहद हो चुका था। दोनों पक्ष थक गए थे, और दोनों इस समय सन्धि के लिए उत्सुक थे। पत्र व्यवहार शुरू हुश्रा और दिसम्बर सन् १८०३ में बरार के राजा राघोजी भोसले और ग्वालियर के महाराजा सींधिया और दौलतराव सींधिया दोनों के साथ अंगरेजों की भोसले के साथ सन्धि सन्धि हो गई जिसमें दोनों के वे अत्यन्त उपजाऊ प्रान्त जो अंगरेज़ जीत चुके थे, कम्पनी के राज में मिला लिए गए। जसवन्तराव होलकर को अंगरेज़ अभी तक अपनी ओर मिलाए हुए थे। असहाय दौलतराव को सब से अधिक डर उसके पुराने शत्रु जसवन्तराव होलकर का दिलाया गया। लाचार होकर फ़रवरी सन् १८०४ में दौलतराव सींधिया ने बरहानपुर में कम्पनी के साथ उसी तरह की सबसीडीयरी सन्धि स्वीकार कर ली, जिस तरह की सन्धि पेशवा के स्वीकार करने के विरुद्ध उसने कुछ समय पहले इतने प्रबल प्रयत्न किए थे। कम्पनी की सेना अव सींधिया के खर्च पर सींधिया के राज में, किन्तु कम्पनी के अंगरेज़ अफसरों के अधीन रहने लगी। कम्पनी का भारतीय साम्राज्य जितना इस युद्ध से बढ़ा उतना