७०६ भारत में अंगरेजी राज यद्यपि लेक के अनेक अफसर और अधिकांश सिपाही लसवाड़ी के मैदान में काम पाए, फिर भी विजय जनरल लेक ही की ओर रही । लेक के २८ अकबर के एक पत्र से सावित है कि कई दिन पहले से लेक ने अपने "गुप्त उपाय" इस सेना में शुरू कर दिए थे मराठा सेना की तोपें भी अंगरेजों के हाथ आई। लसवाड़ी की लड़ाई भी भारत की निर्णायक लड़ाइयों में गिनी जाती है, क्योंकि लसवाड़ी की सेना उत्तरी भारत में मराठों की अन्तिम सेना थी। मराठों की जो तो इन अनेक संग्रामों में अंगरेजों के हाथ आई, उनके विषय में अनेक अंगरेज़ अफ़सर मुक्त कण्ठ से स्वीकार करते हैं कि वे अंगरेज़ों की उस समय की तोपों से हर बात में बढ़िया और कहीं अधिक उपयोगी थीं। दौलतराव सींधिया की सत्ता को समाप्त करने के लिए अब केवल दो बातें बाकी थीं। एक राजधानी ग्वालियर विजय ग्वालियर पर कब्जा करना और दूसरे सींधिया की योजना और उसके साथ की सवार सेना को परास्त करना। ग्वालियर की रक्षा अम्बाजी के सुपुर्द थी। अम्बाजी को सींधिया से फोड़ने के प्रयत्न जारी थे। लसवाड़ी की विजय के बाद जनरल लेक ने मार्किस वेल्सली को लिखा:- ___ "मैं बड़ा खुश हूँ कि सिवाय ग्वालियर के भापकी और सब इच्छाएँ मैंने पूरी कर दी है। मुझे विश्वास है कि ग्वालियर हमें अम्बाजी के साथ
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भारत में अंगरेज़ी राज