पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/२९२

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साम्राज्य विस्तार

साम्राज्य विस्तार ७० नहीं किया। ११ सितम्बर सन् १८०३ को जमना के इस पार लुई बोरगुइन की सेना और जनरल लेक को सेना में एक घमासान संग्राम हुा । लेक के अनेक अफ़सर और सिपाही इस संग्राम में काम पाए । किन्तु स्वयं सम्राट शाह आलम के श्रादमियों के द्वारा लुई बौरमुइन की सेना के भीतर भी लेक की चाँदी की गोलियाँ चल चुकी थीं। विजय अन्त में जनरल लेक की ओर रही और सींधिया की ज़बरदस्त तोपे अंगरेजों के हाथ आई। १२ सितम्बर को लेक ने गवरनर जनरल के नाम एक विस्तृत पत्र लिखा कि किन किन कारणों से मैं ग्वालियर का इरादा छोड़ कर दिल्ली की ओर बढ़ पाया। दिवो का दिल्ली में १६ सितम्बर सन् १८०३ को विजयी लेक ने सम्राट शाह पालम से भेंट की। एक पिछले अभ्याय में दिया जा चुका है कि किस तरह के झूठे वादों क्रियात्मक में फंस कर भोले और अभागे मुग़ल सम्राट ने प्रभुत्व अपने देशवासी सींधिया के विरुद्ध विदेशियों का साथ दिया। बहुत सम्भव है कि बिना शाहबालम की सहायता और सहानुभूति के दिल्ली विजय करना अंगरेजों के लिए इतना सरल न होता। शाहआलम को शुरू से अंगरेजों पर थोड़ा बहुत सन्देह भी अवश्य था। एक बार उसने कहा था कि-"ऐसा न हो कि मुल्क पर कब्जा कर लेने के बाद अंगरेज़ मुझे भूल जायें।" सम्राट के दरबार के अन्दर भी अंगरेजों के छिपे हुए हित साधक