रीपू सुलतान जाम उठाकर केवल हर दिखाकर या बड़कर टीपू को शकिहीन कर देने का पका निश्चय कर चुका हूँ।" इसके बाद बिना टीपू के उत्तर का इन्तज़ार किए वेल्सली कलकत्ते से चल दिया और ३१ दिसम्बर सन् टीपू और वेल्सची में पत्र व्यवहार " १७६ को स्वयं युद्ध के मैदान के समीप रहने के उद्देश से मद्रास पहुँच गया। मद्रास पहुँचते ही उसे अपने ८ नवम्बर के पत्र के उत्तर में टीपू का साफ साफ पत्र मिला। मॉरीशस वाले मामले के जवाब में टीपू ने लिखा:- "इस खुदादाद सरकार में एक कौम ऐसे म्यापारियों की है जो अरको पर और समुद्र पर दोनों जगह तिजारत करते हैं। इनके गुमारतों ने एक दो मस्तूल वाखा बहा वरीदा और उसमें चावल भर कर तिजारत के लिए निकले । अकस्मात् यह जहाज़ मारीशस टापू जा पहुँचा । वहाँ से चालीस भादमी फ्रांसीसी और काले राके, जिनमें से १० या १२ दसकार थे और बाकी नौकर थे, जहाज का किराया देकर रोज़ी की तलाश में यहाँ मा गए । उनमें से जिन्होंने नौकरी करना पसन्द किया वे रख लिए गए, बाकी इस खुदादाद सरकार की सीमा से बाहर चले गए। शायद फ्रांसीसियों ने, जिनमें बुराई और बस भरा हुआ है, इस जहाज के जाने से फायदा उठाकर इन दोनों सरकारों के दिलों में मैख पैदा कर देने के उद्देश सं ये अफवाहें उगा दी है। ___"मेरी यह दिली ग्वाहिश है और मैं सदा इसी कोशिश में लगा रहता है कि सुबहनामे की शर्त पूरी हो और कम्पनी बहादुर को सरकार के साथ दोस्ती और मेवा की बुनियाद स्थाई और मजबूत रहे। xxxइस
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टीपू सुल्तान