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भारत में अंगरेज़ी राज

उन्हें एक बहुत बड़ी रकम धन की देने का वादा किया, किन्तु ये मुकाबला करने का निश्चय किए बैठे थे, और उन्होंने बहुत जम कर और मैं गा, अत्यन्त वीरता के साथ हमारा मुकाबला किया ।"* फिर भी किले के कुछ हिन्दोस्तानो और अधिकांश यूरोपियन अफसरों और सिपाहियों पर लेक का जादू चल गया । ४ सितम्बर को सवेरे जनरल लेक ने किले पर हमला किया। सींधिया के उन यूरोपियन अफ़सरों में, जो शत्रु से श्रा मिले, एक अंगरेज लूकन था। लूकन ही ने किले के गुप्त रास्ते का अंगरेजों को भेद दिया। जनरल लेक ने अपने पत्र में गवरनर जनरल से सिफारिश की है कि “लूकन को खूब इनाम दिया जाय । क्योंकि वह सींधिया की नौकरी छोड़कर इसलिए चला आया था ताकि उससं अपने देश के विरुद्ध कोई काम न हो जाय।" और क्योंकि अलीगढ़ के किले को जीतने में "हमें उसकी सेवाओं से असीम लाभ हुआ है।"+ ."ASI told Your Lordship in my letter of the 1st instt, I had tied every method to prevail upon these people to give up the fort, and offered a very large sum ot money, but they were determined to hold out, which they did most obstinately, and Imay say most gallantly "-General Lake to the Governor-General, dated 4th September, 1803 + "I feel I shall be wanting in justice to the merits of Mr Lucan, an officer, a native of Great Britaan, who lately quitted the service of Scindhya, to avoid serving against his country, were I not to recommend him to your Lordship's particular attention. He gallantly undertook to . point out the road through the fort, . received infinite benefit from his service, . . . . . it will afford me great satisfaction, if his services are rewarded by Governmet."-General Lake's letter to Marquess Wellesley, dated 4th September, 1803, from Aligarb.