पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/२८३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
६९२
भारत में अंगरेज़ी राज

६४२ भारत में अंगरेज़ी राज में अन्न की भारी कमी पड़ने लगी। करीब करीब हर पांचवें साल भयङ्कर दुष्काल पड़ने लगा और सदा दुष्काल का डर रहने लगा। प्रान्स पर कब्ज़ा करने के अगले ही साल कप्तान मॉरगन ने भारत के अन्य प्रान्तों से पुरी जाने वाले यात्रियों को सावधान कर दिया कि कटक प्रान्त में चावल की कमी है, इसलिए यात्री अपने अपने प्रान्तों से भोजन की सामग्री साथ लेकर श्रावे ।। बुन्देलखण्ड का प्रदेश अंगरेजों को और भी अधिक सुगमता से मिल गया। यह प्रदेश पेशवा के अधीन था। बुन्देख खण्ड यहाँ का राजा शमशेर बहादुर पेशवा को खिराज देता था। बसई की सन्धि में पूना के दक्खिन का कुछ इलाका और कुछ सूरत के पास का इलाका पेशवा ने कम्पनी के नाम कर दिया था। अब पेशवा पर जोर देकर उन दोनों छोटे छोटे इलाकों के बदले में बुन्देलखण्ड का समृद्ध प्रान्त अंगरेजो ने पेशवा से माँग लिया। किन्तु राजा शमशेर बहादुर ने अंगरेजो की अधीनता में रहना स्वीकार न किया । इसलिए करनल पॉवेल के अधीन एक सेना इलाहाबाद से बुन्देलखण्ड भेजी गई। ६ सितम्बर सन् १८०३ को • " Cuttack now begins to be noticeable as it is at frequent antervals पर कब्जा throughout the early years of British rule as a place in constant want of INpples and always on the verge of femine On first December, 1803, an urgent call is made for fifteen thousand maunds of rice from Balasore Agaun on first June 1804, Captain Morgan is ordered to warn all pilgrims of the great scarcity of rice and cowries at Cuttack and to endeavour to induce them to supply themselves with provisions before entering the province "- J Beams, in the Notes above quoted