साम्राज्य विस्तार ६७ चित्रित करती हैं, किन्तु इन्हें यहाँ पर उद्धृत करना व्यर्थ है। करमल कैम्पबेल ने गजम में अपनी फ़ौज जमा की। जिस तरह का एलान मैसूर की राजधानी में प्रवेश करते समय मैसूर की प्रजा के नाम जनरल हैरिस ने प्रकाशित किया था, उसी तरह का एलान अब उड़ीसा की प्रजा के नाम प्रकाशित किया गया। सरकारी पत्रों में लिखा है कि "जगन्नाथ के पण्डों के धार्मिक भावों, उनके पूजा पाठ और उनकी धार्मिक प्रतिष्ठा" की ओर विशेष प्रादर दिखलाया गया, और आस पास के सामन्तों, ज़मोदारों इत्यादि में से किसी को लोभ देकर और किसी को डरा कर जिस तरह हुश्रा अपनी ओर मिलाया गया। इन कूट प्रयत्नों का और उड़ीसा की भारतीय प्रजा में राजनैतिक भावों के प्रभाव का परिणाम यह हुआ कि इतिहास लेखक जे० बीम्स के शब्दों में जिस समय अंगरेज़ :- ___ "सामने दिखाई दिए, मराठों को अपनी लड़ाइयाँ अकेले सदनी पड़ों, लोगों ने उनको बिलकुल मदद नहीं की।" यही लेखक लिखता है कि यदि उड़िया लोग मराठों की मदद करते तो-“पहाड़ियों और समुद्रतट के योधा राजा हमें बड़ी आपत्तियों में डाल सकते थे।"* ... . . . when the English appeared on the scene, the Marathas were left to fight their own battles, quite unsupported by the people . . . Had they done so, the turbulent Rajas of the hills and the sea coast might have given us a great deal of trouble ., "-Mr J. Beams, in his "Note on the History of Orrissa," published in the Journal of the Asatte Socsety of Bengal for 1883.
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साम्राज्य विस्तार