भारत में अंगरेजी राज बाम उठा कर हम सन्धि की बात चीत में देर लगा दें तो भाप देख सकते है कि जब मैं चाहूँ तब इस अस्थायी सुलह का अन्त कर देना मेरे हाथों में है, और यदि जिस दिन यह सुखहनामा हस्ताक्षर होकर मेरे पास प्रा जाय उसके अगले ही दिन मुझे इस सुबह का अन्त कर देना पड़े, तो भी कम से कम मुझे हर मोर अपनी काररवाइयों के लिए काफी समय मिल जायगा और दोनों शत्रुनों को एक दूसरे से बिलकुल फार देने में मैं सफल हो चुका हूँगा।"* वास्तव में पाश्चात्य राजनीति में ईमानदारी के लिए कोई स्थान नहीं । शीघ्र ही जनरल वेल्सली का छल प्रकट हो गया। २३ तारीख को सुलहनामा लिखा गया । १० दिन सुलहनामे पर महाराजा दौलतराव के दस्तखत होकर भरगाँव 4 लौटने के लिए नियत कर दिए गए। उधर दो पर हमला दिन के अन्दर ही स्टोवेन्सन बरहानपुर की ओर से लौट कर वेल्सली से श्रा मिला, और २६ नवम्बर को यानी सुलहनामा लिखे जाने के केवल छै दिन के अन्दर वेल्लली ने विश्वासघात करके अचानक सींधिया के अरगाँव के किले पर हमला कर दिया। सींधिया के उन वकीलों ने, जो सुलह के लिए • "It advantage should be taken of the cessation of hostihties to delay the engotiations for peace, Your Excellency will observe that I have the power of putting an end to at when Iplease, and that, supposing I am obliged to put an end to st, on the day after I shall receive sts ratification, I shall at least havegained so much time every where for my operations, and shall have succeeded in darding the enemy enterely "-General Wellesley's letter to the Governor-General, dated 24th November, 1803
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भारत में अंगरेज़ी राज