पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/२६०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
६६९
साम्राज्य विस्तार

साम्राज्य विस्तार इतने कम तितर बितर हुए थे कि करनल स्टीवेन्सन के पीछा करने से उन्हें ज़रा भी डर न था।"* करनल स्टीवेन्सन सींधिया की इस सेना से डरता था। इस लिए वह उसके पीछा करने का साहस न कर सका। असाई के संग्राम में अपने कुछ लोगों के विश्वासघात और . अपना तोपखाना शत्रुओं के हाथों में चले जाने सुलह की कोशिश के समाचार सुन दौलतराव को बड़ा दुःख हुआ। दौलतराव के साथ इस समय पेशवा बाजीराव का एक अत्यन्त विश्वस्त दूत बालाजी कुञ्जर था, जिसने अनेक बार बड़ी वफ़ादारी और त्याग के साथ अपने स्वामी और देश दोनों की सेवा की थी, जिसे अंगरेजों ने कई बार धन इत्यादि का लोभ दिया, किन्तु जिसे वे किसी प्रकार भी अपनी ओर न फोड़ सके। बालाजी कुञ्जर बसई की सन्धि पर बातचीत करने के लिए और यदि हो सके तो दौलतराव सींधिया को पूना ले जाने के लिए पेशवा की ओर से सींधिया के दरबार में भेजा गया था और सींधिया तथा अंगरेजों के बीच युद्ध छिड़ जाने पर भी इस समय तक बराबर सींधिया के साथ मौजूद था। असाई के संग्राम के एक सप्ताह के अन्दर बालाजी कुञ्जर ने सींधिया की सलाह से और सींधिया की ओर से जनरल वेल्सली को एक लम्बा पत्र लिखा। - "The enemy had been so little broken or dispersed by their defeat that they had little to dread irom the pursunt of Colonel Stevenson. "-MIL vol. vi, page 358.