६६४ भारत में अंगरेजी राज बरार की सरहद से मिले हुए प्रसाई नामक प्राम में मराठों और कम्पनी की सेनाओं के बीच एक प्रसिद्ध संग्राम प्रसाई का हुश्रा, जो भारत के निर्णायक' संग्रामों में गिना संग्राम जाता है और जिसका निस्सन्देह इस देश के अन्दर ब्रिटिश सत्ता के विस्तार पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा। दौलतराव सींधिया के साथ उस समय लगभग पचास हज़ार पैदल, बहुत से सवार और एक ज़बरदस्त तोपखाना था। दौलतराव इस भ्रम में कि अंगरेज़ों की मुख्य सेना हैदराबाद में है, अपने सवारों सहित तेजी के साथ हैदराबाद की ओर बढ़ा चला गया। उसकी पैदल और तोपखाने की सेना कुछ पीछे रह गई । कहते हैं कि उसी समय दशहरे का त्योहार पड़ा। दशहरा मनाने के लिए इस पीछे वाली सेना ने असाई में कुछ देर कर दी । यहाँ तक कि श्रास पास चारे की कमी हो गई । ठीक २३ तारीख़ को तोपख़ाने के तमाम बैल खोल कर चरने के लिए दूर भेज दिए गए। वेल्सली को इन सब बातों का पता था अथवा ये सब बातें पहले से तय थीं। क्योंकि सोंधिया की सवार सेना के अफसर मराठे थे, किन्तु पैदल और तोपखाने की सेना में अनेक अफसर यूरोपियन थे, जिन्हें अंगरेज़ पहले से ही लोभ देकर अपनी ओर मिला चुके थे । इन्हीं यूरोपियनों द्वारा उस सेना के अनेक हिन्दो- स्तानी अफसरों को भी अंगरेजों ने अपनी ओर कर लिया था। इन विश्वासघातकों में से कुछ लोग शुरू हो में सींधिया को छोड़ कर अंगरेजों की ओर चले गए थे, किन्तु कुछ ऐन मौके पर काम
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भारत में अंगरेज़ी राज