६२८ भारत में अंगरेजी राज इस पत्र के साथ दो फ़ारसी पत्रों की नकलें थीं, जिनके विषय में कहा जाता है कि सींधिया ने सहारनपुर के पदच्युत नवाब बम्बूखाँ और रामपुर के पदच्युत नवाब गुलाम मोहम्मद खाँ के नाम भेजे थे, जिनमें सौंधिया ने उनसे अंगरेजों के विरुद्ध सहायता की प्रार्थना की थी और जिनकी नकले लीस्टर को बम्बूला से मिलीं। मूल पत्र न बम्बूखाँ ने लीस्टर को दिए, न लीस्टर ने वेल्सली को; और न कहीं मौजूद हैं । जो नकलें इधर से उधर तक भेजी गई, उन पर तारीख तक नदारद । बम्बूख़ाँ अंगरेज़ो का धनक्रीत था, जिसका अधिक वृत्तान्त आगे चल कर दिया जायगा। इसके अतिरिक्त युद्ध का एलान मार्किल वेल्सली ने ६ अगस्त को किया और लीस्टर का पत्र वेल्सली को १५ अगस्त को मिला। इसके अलावा बम्बूखाँ का सारा चरित्र इतना नीच और अविश्वसनीय था, इन पत्रों की भाषा इतनी लचर है और स्वयं लीस्टर के पत्र में लोस्टर का जालसाज़ होना इतना साफ जाहिर है कि इन पत्रों की सच्चाई पर विश्वास करना या उन्हें युद्ध के कारणों में कोई स्थान देना सर्वथा असम्भव है। माधोजी सोंधिया और मूदाजी भोसले दोनों ने ऐसे संकट के समय, जब कि अंगरेज कम्पनी के पैर भारत से उखड़ते हुए नज़र आते थे, इन विदेशियों की सहायता की थी; आज उन दोनों के वंशजों और उत्तराधिकारियों को अपने पूर्वजों की अदूरदर्शिता का दण्ड भोगना पड़ा। मार्च सन् १८०४ में इस दूसरे मराठा युद्ध की न्याय्यता और
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भारत में अंगरेज़ी राज