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भारत में अंगरेज़ी राज

१०८ भारत में अंगरेज़ी राज बेल्सली को यह भी अनुभव हो चुका था कि मराठों के साथ लड़ाई छेड़ने का सब से अच्छा समय बरसात है । इसलिए उसने कॉलिन्स को लिखा कि अभी श्राप बरसात शुरू होने तक सोंधिया के साथ बने रहिए और सीधिया को धोखे में रखने के लिए बराबर उससे मित्रता का दम भरते रहिए । जैसे जैसे अंगरेजों की तैयारी बढ़ती गई, वैसे वैसे ही उनका रुख भी बदलता चला गया । ३० मई सन् १८०३ युद्ध गुरु को गवरनर जनरल वेल्सली ने महाराजा सींधिया तैयारी " को लिखा-"श्राप शान्ति कायम रखने के लिए तुरन्त आगे बढ़ने का इरादा छोड़कर नर्बदा पार कर अपनी राजधानो को लौट जाइए", बरार के राजा राघोजी भोसले को लिखा कि-'श्राप लौटकर नागपुर चले श्राइए' और उसी दिन पूना के रेज़िडेण्ट करनल क्लोज़ को लिखा कि यदि सींधिया नर्वदा पार कर उत्तर की ओर चला जाय तो भी कम्पनी की सेना बराबर दक्खिन के मैदान में तैयार रहे और यदि जसवन्तराव होलकर अपनी सेना सहित पूना पाना चाहे तो उसे भी रोक दिया जाय । साथ ही वेल्सली ने भोसले के कटक प्रान्त की सरहद पर मेदिनीपुर की छावनी में कम्पनी की सेना बढ़ाए जाने की आज्ञा दे दी। इस सब का मतलब यह है कि जब कि अंगरेज़ "शान्ति और मित्रता" के नाम पर होलकर, सींधिया और भोसले इन तीमा के मिलने या पेशवा की आशा पर इनमें से किसी के पूना जाने तक को रोक रहे थे, वे स्वयं इन मराठा नरेशों का नाश करने के