बाजीराव का पुनरभिषेक ५६ में उसे बाजीराव से बढ़कर उपयोगी यन्त्र मराठा साम्राज्य के अन्दर मिल सकना कठिन था। बाजीराव के एक पुराने सेनापति बापूजी गणेश गोखले ने जो दक्खिनी सरहद पर नियुक्त था, वेल्सली से मिल कर दक्खिन के जागीरदारों को वश में करने में अंगरेज़ों को काफी सहायता दी । करनल वेल्सली के पत्रों में गोखले और अंगरेजों की साजिश का जिक्र पाता है। उधर बाजीराव अंगरेजों की एक एक बात मान चुका था और बसई में बैठा हुआ अधीर हो रहा था। मार्च सन् १८०३ को करनल घेल्सली की विशाल सेना ने हरिहर से प्रस्थान किया और १२ मार्च को तुङ्गभद्रा नदी पार की। धूडिया बाघ का पीछा करने के बहाने करनल वेल्सली ने इस सारे प्रदेश का जो अनुभव प्राप्त कर लिया था वह इस अवसर पर उसके बहुत काम आया। भयभीत अथवा धनकीत जागीरदारों ने उसका किसी तरह का मुकाबला नही किया। पूना के अन्दर जसवन्तराव और अमृतराव में झगड़ा हो हो चुका था। जसवन्तराव बराबर अभी तक - अंगरेजो के हाथो में खेल रहा था और अब पूना त्याग " ठीक इस मौके पर असहाय अमृतराव को पूना में छोड़कर स्वयं अपनी सेना सहित इन्दौर की ओर चल दिया। अमृतराव के पास उस समय केवल १५०० सिपाही बाकी थे। मार्ग में जसवन्तराव ने न केवल पेशवा के इलाके में लूट खसोट की, वरन् कम्पनी के परम मित्र निज़ाम के राज्य में घुसकर निज़ाम के कुछ इलाके और खास कर औरंगाबाद के नगर को भी लूटा।। जसवन्सराव का
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बाजीराव का पुनरभिषेक