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इक्कीसवाँ अध्याय बाजीराव का पुनरभिषेक बसई की सन्धि भारत के अन्दर अंगरेज़ी साम्राज्य के संस्थापन में एक विशेष सीमाचिन्ह थी। इस बसई की सन्धि सन्धि की खबर पाते ही सीधिया तथा अन्य से मगठा मंडल स्वाधीन मराठा नरेशों का परेशान होना स्वाभाविक था। पूना में अब कोई समझदार नीतिज्ञ इस बात के पक्ष में न था कि निर्बल बाजीराव बसई की सन्धि अपने ऊपर लादे हुए पूना वापस श्रावे और विदेशी सङ्गीनों के बल फिर पेशवा की मसनद पर बैठे। किन्तु कम्पनी का जसवन्तराव होलकर तथा अमृतराव दोनों से काम निकल चुका था। मिल लिखता है- "इस समय ब्रिटिश गवरमेण्ट का ध्यान दो महान उद्देश्यों की ओर लगा हुआ था। पहला यह कि बाजीराव को फिर से पेशवा बनाया जाय,